सर्दियों का मौसम जारी है इस मौसम में सेहत के प्रति सजग रहना जरूरी होता है। इस सर्दी के मौसम में फूड क्रेविंग यानि बार-बार खाने की लालसा बढ़ सी जाती है। इसके पीछे ठंड ही नहीं कई कारण छिपे होते है जिसके बारे में शायद ही आप कम जानते है। दरअसल फूड क्रेविंग होने का कारण केवल ठंड या त्योहारों का माहौल नहीं, बल्कि कुछ हार्मोन और जीन भी हैं। जब तापमान गिरता है और ठंडा मौसम होता है तो अचानक भूख लगने लगती है।
कई बार मीठा खाने की चाह भी बढ़ जाती है। तली-भुनी चीजें पहले से ज्यादा आकर्षक लगने लगती हैं। इस स्थिति के पीछे वैज्ञानिक कारण छिपा है।
जानिए स्टडी में इसके बारे में
हाल ही में सामने आई स्टडी के अनुसार, शोधकर्ताओं का मानना है कि जब तापमान कम होता है, शरीर अपने तापमान को बनाए रखने के लिए अधिक ऊर्जा जलाता है। यह ऊर्जा की खपत दिमाग को संकेत देती है कि उसे अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता है। इसी समय कुछ खास जीन एक्टिव हो जाते है, यह जीन आमतौर पर गर्मियों में शांत रहते है लेकिन सर्दियों में क्रिया करते है। शरीर में मौजूद यह जीन भूख बढ़ाने वाले हार्मोन जैसे घ्रेलिन को तेज करते हैं, और संतुष्टि दिलाने वाले हार्मोन लेप्टिन का प्रभाव कम कर देते हैं।
इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति अधिक खाने की इच्छा महसूस करता है, खासकर हाई-कार्ब और हाई-फैट चीजों की, क्योंकि ऐसे भोजन से शरीर को तुरंत ऊर्जा और गर्मी मिलती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि, सर्दियों के मौसम में हमारे शरीर का मेटाबॉलिज्म, हार्मोन और जीन एक अलग तरह की स्थिति में चले जाते हैं, जो ऊर्जा भंडारण यानी एनर्जी स्टोरेज को प्राथमिकता देते हैं।
चूहों पर की गई स्टडी
बताते चलें कि, इस समस्या को लेकर स्टडी की गई है। यहां पर कुछ चूहों पर स्टडी की गई है। बताया जा रहा है कि, खाने की क्रेविंग जीन्स से प्रभावित होती है। रिसर्च में पीआरकेएआर2ए जैसे खास जीन्स की पहचान की गई जो मीठे और फैटी खाने की क्रेविंग को कंट्रोल करते हैं। दूसरे जीन्स, जैसे डोपामाइन पाथवे (डीआरडी2) और टेस्ट रिसेप्टर्स (टीएएस2आर38) को भी खाने की क्रेविंग और लत से जोड़ा गया है। जेनेटिक बदलाव भी इस बात पर असर डाल सकते हैं कि लोगों को किसी चीज का स्वाद कैसा लगता है।
इसके अलावा 2023 में नेचर पत्रिका में “जिफॉइड न्यूक्लियस ऑफ द मिडलाइन थैलेमस कंट्रोल्स कोल्ड इंड्यूस्ड फूड सीकिंग” शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ठंड में मस्तिष्क का एक हिस्सा सक्रिय हो जाता है और भूख बढ़ाता है। वहीं 2019 के एक अध्ययन में अलग-अलग तापमान (जैसे −10 डिग्री सेल्सियस) के वातावरण में लोगों के हार्मोन (घ्रेलिन, लेप्टिन) और उनका भोजन लेने का व्यवहार देखा गया। इसमें भी काफी बदलाव नोटिस किया गया।
मानव विकास यात्रा से जुड़ी जानकारी
यहां पर सर्दियों में जीनों के सक्रिय होने को लेकर दिलचस्प पहलू बताया गया है। इस प्रक्रिया की बात करें तो, हजारों साल पुरानी मानव विकास यात्रा से जुड़ी मानी जाती है। पुराने समय में जब ठंड के मौसम में भोजन की कमी झेलनी पड़ती थी, तब शरीर ऐसे मौसम में स्वचालित रूप से अधिक ऊर्जा जमा करने की कोशिश करता था। उसी जैविक प्रवृत्ति का असर आज भी हमारे जीन में मौजूद है, भले ही अब भोजन की उपलब्धता पहले जैसी समस्या न हो।
सिग्नल को करता है कंट्रोल
यहां पर स्टडी में माना गया है कि, जब सूर्य की रोशनी कम होती है तो शरीर की सर्केडियन रिद्म में भी बदलाव होता है। इस बदलाव का सीधा प्रभाव उन जीनों पर पड़ता है जो खाने की पसंद और खाना कब खाना है, जैसे संकेतों को नियंत्रित करते हैं। यही कारण है कि कई लोगों को सर्दियों में देर रात भी भूख लगने लगती है या बार-बार कुछ न कुछ खाने का मन करता है।
कम रोशनी से मूड पर भी असर पड़ता है, जिससे कंफर्ट फूड यानी ऐसा भोजन जो मन को तुरंत सुख दे, उसकी क्रेविंग बढ़ जाती है।आधुनिक शोध यह भी बताता है कि अगर व्यक्ति सर्दियों में पर्याप्त नींद, हल्की धूप और नियमित व्यायाम बनाए रखे, तो ये ‘फूड क्रेविंग’ काफी हद तक कम हो सकती है, क्योंकि रोशनी, शारीरिक गतिविधि और नींद तीनों सर्कैडियन रिद्म को नियमित रखते हैं और भूख के संकेत देने वाले जीनों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
