लोक निर्माण विभाग में घमासान: औचक गुणवत्ता जांच और तबादला नीति पर टकराव




जबलपुर। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में इन दिनों गुणवत्ता जांच और स्थानांतरण नीति को लेकर अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आ गई है। निर्माण कार्यों की औचक गुणवत्ता जांच का डिप्लोमा इंजीनियरों द्वारा विरोध किए जाने से विभागीय कामकाज ठहराव की स्थिति में पहुंच गया है। इस रुख ने न सिर्फ विभागीय अनुशासन पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि शासन और प्रशासन के बीच तनाव भी बढ़ा दिया है। विभाग का मानना है कि निरीक्षण का विरोध इस बात का संकेत है कि कुछ अधिकारी अपनी कार्यप्रणाली और जवाबदेही को कसौटी पर कसने के लिए तैयार नहीं हैं।

दो दशकों से एक ही जगह जमे अधिकारी
विभागीय जांच में यह तथ्य सामने आया है कि जबलपुर सहित प्रदेश के कई उपयंत्री और सहायक यंत्री पिछले 15 से 20 वर्षों से एक ही जिले या संभाग में पदस्थ हैं। लंबे समय तक एक ही स्थान पर बने रहने से स्थानीय स्तर पर ऐसे समीकरण बन गए हैं, जो निर्माण कार्यों की गुणवत्ता से समझौता करने की वजह बनते हैं। तबादलों की चर्चा होते ही स्थानीय राजनीतिक हस्तक्षेप सामने आ जाता है, जो इन अधिकारियों के लिए ढाल का काम करता है।

पारदर्शिता के लिए ‘कुंडली’ तैयार करने के निर्देश
हालात सुधारने के लिए विभाग ने सख्त रुख अपनाया है। प्रमुख अभियंता केपीएस राणा को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रदेशभर के मुख्य अभियंताओं से लंबे समय से एक ही स्थान पर पदस्थ इंजीनियरों की विस्तृत सूची तैयार कराएं। इस सूची में उनकी पिछली पदस्थापनाओं और कार्यकाल का पूरा ब्योरा—यानी ‘कुंडली’—शामिल होगी। शासन का स्पष्ट मत है कि सेवा नियमों के अनुसार किसी भी अधिकारी का एक स्थान पर तीन वर्ष से अधिक ठहराव निष्पक्षता और गुणवत्ता दोनों के लिए घातक है।

भर्ती का रोडमैप, संरक्षण पर ब्रेक
हालांकि विभागों में स्टाफ की कमी है, लेकिन सरकार ने आगामी तीन वर्षों में ढाई लाख पदों पर भर्ती का लक्ष्य तय किया है। अब रिक्तियों की आड़ लेकर दागी या वर्षों से जमे अधिकारियों को संरक्षण नहीं मिलेगा। विभाग की यह तबादला नीति पारदर्शिता की दिशा में कदम होने के साथ-साथ गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों पर सख्त लगाम कसने की बड़ी कवायद मानी जा रही है।

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