जबलपुर।मध्य प्रदेश के औद्योगिक और बड़े बिजली उपभोक्ताओं के लिए नया साल राहत नहीं, बल्कि सीधा आर्थिक झटका लेकर आ रहा है। बिजली कंपनियों ने दरें बढ़ाने का ऐलान किए बिना ही उपभोक्ताओं की जेब पर अतिरिक्त बोझ डालने की तैयारी कर ली है। इसके लिए एक नया तकनीकी मायाजाल बुना गया है, जिसके तहत अब बिलिंग का आधार किलोवाट (kW) से बदलकर किलो वोल्ट एम्पियर (kVA) करने का प्रस्ताव रखा गया है।
बिजली कंपनियों ने यह मांग मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के समक्ष रखी है। अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो गया, तो उपभोक्ताओं को सिर्फ उतनी बिजली का नहीं, जितनी उन्होंने इस्तेमाल की, बल्कि उस बिजली का भी भुगतान करना होगा जो उनके उपकरणों तक पहुँची तो सही, लेकिन उपयोग में नहीं आ सकी।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह तरीका दरें बढ़ाए बिना ही बिल बढ़ाने का एक पिछला दरवाज़ा है, जिसे आम भाषा में उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी माना जा सकता है।
बिल में कितनी बढ़ोतरी होगी?
नए प्रस्ताव के लागू होते ही बिलिंग का पूरा फॉर्मूला बदल जाएगा और कुल देय राशि में काफी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
सबसे ज्यादा असर—
-
भारी उद्योगों
-
शॉपिंग मॉल्स
-
बड़े निजी अस्पताल
-
शिक्षण संस्थानों
पर पड़ेगा। इन जगहों पर बड़ी मशीनों और उपकरणों के कारण रिएक्टिव पावर और बिजली का तथाकथित “वेस्टेज” ज्यादा होता है, जिसका सीधा बोझ अब बिल में जोड़ा जाएगा।
बिजली मामलों के जानकार राजेंद्र अग्रवाल के अनुसार,
“यह प्रस्ताव तकनीकी शब्दों की आड़ में नियामक आयोग और जनता—दोनों को गुमराह करने जैसा है। इसका वास्तविक उद्देश्य दरें बढ़ाए बिना राजस्व बढ़ाना है।”
आम आदमी तक कैसे पहुँचेगा असर?
बिजली महंगी होते ही उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। इसका सीधा असर बाजार में बिकने वाले सामानों और सेवाओं की कीमतों पर पड़ेगा। यानी जो बोझ आज उद्योगों पर डाला जा रहा है, उसकी मार कल आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ेगी।
नया साल शुरू होने से पहले बिजली कंपनियों का यह प्रस्ताव अब एक बड़े सवाल के रूप में खड़ा है—

